भारतीय मौलिक अधिकार
- मौलिक अधिकारों को संयुक्त राज्य अमेरिका(USA) के संविधान से लिया गया है
- इसका वर्णन संविधान के भाग 3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक) है संविधान के भाग 3 को भारत का अधिकार पत्र यानी मैग्नाकार्टा कहा जाता है इसे मूल अधिकारों का जन्मदाता भी कहा जाता है
- मौलिक अधिकारों में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 352) के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है
- मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन 44 वें संविधान संशोधन 1978 ईस्वी के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31 एवं 19 क) को मौलिक अधिकार के सूची से हटा कर इसे संविधान के अनुच्छेद 300A अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है
ध्यान दें:- 1931 ईस्वी में कराची अधिवेशन की अध्यक्षता सरदार वल्लभभाई पटेल ने कांग्रेस के घोषणापत्र में मूल अधिकारों की मांग की मूल अधिकारों का प्रारूप पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बनाया था
मौलिक अधिकार
1 | समता या समानता का अधिकार | अनुच्छेद 14 से 18 तक |
2 | स्वत्नत्रता का अधिकार | अनुच्छेद 19 से 22 तक |
3 | शोषण के विरुद्ध अधिकार | अनुच्छेद 23 से 24 तक |
4 | धार्मिक स्वत्नत्रता का अधिकार | अनुच्छेद 25 से 28 तक |
5 | संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार | अनुच्छेद 29 से 30 तक |
6 | संवैधानिक उपचारो का अधिकार | अनुच्छेद 32 |
1 समता या समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता) इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान लागू करेगा
- अनुच्छेद 15 (धर्म नस्ल जाति लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध):- राज्य के द्वारा धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग एवं जन्म के स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा
- अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता ) :- राज्य के अधीन किसी भी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी
अपवाद:- अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग
- अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत यानी छुआछूत का अंत) अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है
- अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत) :- सेना या विधि संबंधी सम्मान के सिवाय अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है
ध्यान दें:- भारत सरकार द्वारा भारत रत्न पदम विभूषण पदम भूषण पदम श्री एवं सेना द्वारा परमवीर चक्र महावीर चक्र वीर चक्र इत्यादि पुरस्कार अनुच्छेद 18 के तहत ही दिए जाते हैं
स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 19:- मूल संविधान में 7 तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था अब सिर्फ 6 प्रकार की स्वतंत्रता का उल्लेख है (अनुच्छेद 19 f ) संपत्ति का अधिकार 44 वासंविधान संशोधन 1978 द्वारा हटा दिया गया
6 तरह की स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 19 (A) बोलने का अधिकार
- अनुच्छेद 19 (B) शांति पूर्वक बिना हत्यारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 19 (C) संघ बनाने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 19 (D) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 19(E) देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने करने और बसने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 19 G कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता
ध्यान दें :- प्रेस की स्वतंत्रता का वर्णन अनुच्छेद 19 (F) में ही है
- अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोष सिद्ध के संबंध में संरक्षण):- इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है
- किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी
- अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी ना के पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत
- किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा
- अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण ):- किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तित्व स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है
ध्यान दें :- अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों को स्वतंत्र एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराए | इसके लिए भारत सरकार ने संसद से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 पारित कराया अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है जबकि चार अन्य पीठ भोपाल पुणे कोलकाता एवं चेन्नई में है राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश में पर्यावरण से संबंधित मामलों के लिए उत्तरदाई है
- अनुच्छेद 21 (क):- राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु से समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसे कि राज्य विधि द्वारा अवधारणा करें, निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएं 86 वा संविधान संशोधन 2002
- अनुच्छेद 22 (कुछ दशाओ में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण) :-
अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया है तो उसे तीन प्रकार की स्वत्नत्रता प्रदान की गई है
- हिरासत में लेने का कारण बताना होगा
- 24 घंटे के अंदर आने जाने के समय को छोड़कर उसे दंडनीय अधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा
- उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा
निवारक निरोध
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 3, 4, 5 तथा 6 से संबंधी प्रावधानों का उल्लेख है | निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपराध करने के पूर्व भी गिरफ्तार किया जाता है निवारक निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दंड देना नहीं वरन उसे अपराध करने से रोकना है यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा लोग व्यवस्था बनाए रखने या भारत के सुरक्षा संबंधी कारणों से हो सकता है जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध की किसी विधि के अधीन गिरफ्तार किया जाता है तब
- सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकती है यदि गिरफ्तार व्यक्ति को 3 माह से अधिक बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है
- इस प्रकार विरुद्ध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किए जाएंगे किंतु जिन तथ्यों को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नहीं है
- निरोध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए शीघ्र ति शीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए
निवारक निरोध से संबंधित अब तक बनाई गई विधियां
1 निवारक निरोध अधिनियम 1950:- भारत की संसद ने 26 जनवरी 1950 ईस्वी को पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था इसका उद्देश्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत के प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य करने से रोकना था इसे 1 अप्रैल 1951 ईस्वी को समाप्त हो जाना था किंतु समय- समय पर इसका जीवनकाल बढ़ाया जाता रहा अतः यह 31 दिसंबर 1971 ईस्वी को समाप्त हुआ
2 आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम 1971:- 44 वें संविधान संशोधन 1979 इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल 1979 में यह समाप्त हो गया
3 विदेशी मुद्रा संरक्षण व तस्करी निरोधक अधिनियम 1974:- पहले इसमें तस्करी के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी जिसे 23 जुलाई 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष कर दिया गया
4 राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980:- जम्मू कश्मीर के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों में लागू किया गया पांचवा आतंकवादी एवं विध्वंस कारी गतिविधियों निरोध कानून निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत अब तक जो कानून बने उनमें यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था 30 मई 1995 ईस्वी को ऐसे भी समाप्त कर दिया गया
शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद 23:- (मानव के दुर्व्यपार और बलातश्रम का प्रतिषेध):- इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीदी या बिक्री या बेगारी या इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती किया हुआ श्रम निषेध ठहराया गया है जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है
ध्यान दें :- जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाद किया जा सकता है
- अनुच्छेद 24 (बालकों को नियोजन का प्रतिषेध) :- 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक अनुच्छेद 25)
- अनुच्छेद 25:-(अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने ,आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता ) :- कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है
- अनुच्छेद 26( धार्मिक कार्यों की प्रबंध की स्वतंत्रता):- व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि समस्त संपत्ति के अर्जन स्वामित्व प्रशासन का अधिकार है
- अनुच्छेद 27 :- राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसा कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है
- अनुच्छेद 28 :- राज्य विधि से पूर्णता पोषित किसी शिक्षा संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण) :- कोई भी व्यक्ति अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा की लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा ,जाति, धर्म और संस्कृत के आधार पर उसे किसी भी सरकार शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा
ध्यान दें:- वर्तमान में 6 समुदायों मुस्लिम, पारसी, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं जैन को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा प्रदान किया गया है अल्पसंख्यक समुदाय के विकास को समुचित आधार प्रदान करने के लिए 2005 में तत्कालीन केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री का 15वां सूत्रीय कार्यक्रम प्रारंभ किया गया
अनुच्छेद 30( शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार):- कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करेगी
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
- संवैधानिक उपचारों के अधिकार को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने संविधान की आत्मा कहा है
- अनुच्छेद 32:- इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने का अधिकार प्रदान किया गया है
इसके संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय में 5 तरह के रिट निकालने की शक्ति प्रदान की गई है
पांच प्रकार की रिट
- बंदी प्रत्यक्षीकरण
- परमादेश
- प्रतिषेध
- उत्प्रेषण
- अधिकारपृच्छा लेख
1 बंदी प्रत्यक्षीकरण:- यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है इसके द्वारा न्यायालय वंदीकरण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करें जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारण पर विचार कर सके
2 परमादेश:- परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करता है इस प्रकार की आज्ञा पत्र के अधीन पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है
3 प्रतिषेध लेख:- यह आज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयो द्वारा निम्न न्यायालय व अर्धन्यायिक, न्यायाधिकरण को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही न करें क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है
4 उत्प्रेषण लेख:- इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वह अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें
5 अधिकार लेख:- जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है तो न्यायालय अधिकारपृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता वह कार्य नहीं कर सकता है
मौलिक अधिकार में संशोधन
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य
1967 के निर्णय से पूर्व दिए गए निर्णय में यह निर्धारित किया गया था कि संविधान में किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है जिसमें अनुच्छेद 368 एवं मूल अधिकार को शामिल किया गया था
सर्वोच्च न्यायालय में गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य बाद 1967
के निर्णय में अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी गई अर्थात संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती
24 वें संविधान संशोधन 1971
द्वारा अनुच्छेद 13 और अनुच्छेद 368 में संशोधन किया गया तथा यह निर्धारित किया गया के अनुच्छेद 368 में दी गई प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य
के निर्णय में इस प्रकार के संशोधन को विधि मान्यता प्रदान की गई अर्थात गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को नष्ट कर दिया गया
42 वें संविधान संशोधन 1976 ईस्वी
द्वारा अनुच्छेद 368 मे खंड 4 और 5 जोड़ी गई तथा यह व्यवस्था की गई कि इस प्रकार किए गए संशोधन को किसी न्यायालय में प्रश्न गत नहीं किया जा सकता